Triveni Diaries S02 E03 - Hostel Life
Updated: Mar 11
कहते है किसी चीज़ को पूरी शिद्दत से चाहो तो उसका होना तय होता है।ऐसा ही कुछ शुभांगी के साथ भी हुआ।उसका इंतजार फाइनली खत्म हुआ और कॉलेज ऑफलाइन खुल ही गया।और उसे अब हॉस्टल लाइफ जीने का मौका मिलेगा । क्योंकि थोड़े दिन ही बचे थे कॉलेज खुलने में इसीलिए तैयारियां शुरू हो गगईं दो दिन बाद वाराणसी जाना निश्चित हुआ।
"उसने कार की खिड़की से बाहर झांका जब गर्म हवा ने लगभग वार कर दिया। हवा का झोंका अब आगे आने वाली मुश्किलों के लिए एक नसीहत की तरह लग रहा था।जब उसके पिता कार चला रहे थे शुभांगी मिश्रित भावनाओं का अनुभव करते हुए पीछे सीट पर बैठ गई। वह अब अपने माता पिता के साथ बनारस जा रही थी। वह एक नई यात्रा शुरू करने और अब तक खुद को तलाश करने के लिए पूरी तरह आश्वस्त थी जब वास्तव में दहलीज पर खड़ी थी।
अब वह एक बड़े अनजान शहर में जा रही थी। हालांकि उसके माता पिता उसके साथ थे ,लेकिन वह पहले से ही उन्हें याद करने लगी थी। उसे पता था की हॉस्टल का खाना इतना अजीब होगा की उसे खाना मुश्किल होगा। उसने महसूस किया की उसे कपड़े या बर्तन धोने का कोई पता नहीं था।"मां ने इतना क्यों बिगाड़ दिया"?उसने सोचा।उन्होंने नही बिगाड़ा जब भी उन्होंने मुझे काम करने को कहा मैंने स्वेच्छा से मना कर दिया।अंदर से आवाज ने फटकार लगाई। हॉस्टल पहुंचने के बाद शुभांगी और उसके माता पिता को कमरे की ओर निर्देशित किया गया।एक कमरे में तीन बेड और अलमारी देख कर उसे एहसास हो गया की उसकी मुश्किलें अब शुरू हो गई हहै।"हॉस्टल लाइफ में तुम्हारा स्वागत है" उसके पिता ने हस कर बोला।
उसके माता पिता के जाने का समय हो गया था।जब उसके पिता कार का शीशा ऊपर कर रहे थे उन्हे अपने आंसू रोकते हुए देख सकती थी, लेकिन उसकी मां आंसू छुपाने में सफल नहीं हो पाई। वह तुरंत कार से उतरी और उसे जोर से गले लगा लिया ।मां ने उसे हौसला दिया और समझाया अब उसे खुद ही सब संभालना है ।
ऐसे ही दिन बीते और उसे एहसास हुआ की नए शहर ने उसे खुले विचारों का होना सिखाया और उसे आत्मनिर्भर बनने में सहायता की है। नए लोगों से मिलाया और एक नया दृष्टिकोण दिया जीवन में।